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Panch Kedar | Kedarnath Temple History in Hindi

Kedarnath Temple  केदारनाथ मंदिर

Keadrnath
Kedarnath


आप सभी को मेरा नमस्कार आज हम भगवान भोलेनाथ के सिद्ध स्थान जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है भगवान्  केदारनाथ के बारे में पौराणिक कथाओ और इसके साथ साथ पंच केदारों के बारे में विस्तार से जानेंगे अगर आप बाबा केदारनाथ के सिद्ध स्थानों के बारे में  विस्तार से जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़ें

भारतवर्ष के उत्तराखंड राज्य में चमोली एवं रुद्रप्रयाग जिले में पंच केदार मंदिर स्थापित है पंच केदारों में तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मद्महेश्वर, कल्पेश्वर, और केदारनाथ है इनमें चार मंदिरों की व्यवस्था का कार्य केदारनाथ मंदिर समिति के पास है जबकि बद्रीनाथ मंदिर समिति के पास कल्पेश्वर महादेव मंदिर की व्यवस्था है|

केदारनाथ की जलवायु ठंडी होने के कारण यह मंदिर दर्शनार्थियो के लिए अप्रैल माह से नवम्बर माह के मध्य खोला जाता है इस मंदिर के निर्माण के बारे में कहा जाता है की पांडवों के वंसज जनमेजय ने इस मदिर का निर्माण कराया था

 उसके बाद आदिगुरु शंकराचार्य  जी ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था केदारनाथ और बद्रीनाथ बहुत बड़ा महत्व है केदारनाथ और बद्रीनाथ के बारे में लिखा है की कोई भी अगर केदार नाथ का दर्शन करता है तो उसे बद्रीनाथ के दर्शन करने जरुरी है अन्यथा उसकी यात्रा का फल नहीं मिलेगा|

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि नर और नारायण ऋषि जो भगवान विष्णु के अवतार थे उन्होंने हिमालय में केदार श्रृंखलाओं में भगवान शंकर की तपस्या करनी प्रारंभ कर दी वह उनकी तपस्या करते रहे एक समय ऐसा आया जब भगवान शंकर उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वहां प्रकट हो गए 

 भगवान शंकर ने उनकी इच्छा पूछी नर और नारायण ने भगवान शंकर से कहा कि प्रभु आप इस हिमालय पर्वत के केदार श्रृंग पर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो जाओ जिससे हम आपके दर्शन रोज कर सकें भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उनको यह वर दे दिया और तब से भगवान शंकर इसी केदार नाथ ज्योतिर्लिंग में साक्षात विराजमान हैं

Story of Panch Kedar पंच केदार की कथा

पंच केदार कथा का वर्णन इस  प्रकार है जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और पांडव विजय हुए उसके बाद पांडवों ने उस युद्ध में अपने भाइयों की हत्या कर दी थी  भ्रातृ हत्या के पाप  से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शंकर का आशीर्वाद लेना चाहा लेकिन भगवान शंकर पांडवों से रूठे हुए थे

 तो भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन नहीं दिए उसके बाद पांडवों ने भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी चले गए लेकिन भगवान शंकर उन्हें वहां नहीं मिले पांडव भगवान भोलेनाथ को ढूंढते रहे और ढूंढते ढूंढते वह हिमालय पर्वत पर पहुंच गए लेकिन भगवान शंकर पांडवों से रूठे हुए थे

 इसलिए वे उन्हें दर्शन देना ही नहीं चाहते थे उसके बाद भगवान शंकर हिमालय से अंतर्ध्यान हो कर केदार में चले गए जब भगवान शंकर केदार में चले गए तो पांडव भी उन्हें ढूंढते हुए वहां जा पहुंचे क्योंकि पांडव अपने वचन के पक्के थे पांडवों ने भगवान शंकर का पीछा किया और वह सब केदारनाथ जा पहुंचे

 जब वहां पहुंचे तब तक भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर लिया था और भगवान शंकर बैल का रूप धारण करके अन्य पशुओं के साथ जा मिले अब पांडवों को संदेह हो गया कि भगवान शंकर यहां से कहां चले गए उसके बाद भीम ने विशाल रूप धारण किया

और दो पहाड़ों पर पैर फैला कर रख दिए उसके बाद वहां पर जितने पशु थे वह सब तो भीम के पैर के नीचे से निकल कर चले गए लेकिन शंकर जी ने जिस बैल का रूप धारण किया था वह भीम के पैरों के नीचे से निकल कर जाने को तैयार नहीं हुआ

 उसके बाद भीम ने अपने बल से उस बैल पर अपने विशालकाय शरीर के साथ उस बैल को पकड़ने के लिए झपटे लेकिन वह बैल केदारनाथ की भूमि पर अंतर्ध्यान होने लगा तभी भीम ने बैल के कंधे का उभरा हुआ हिस्सा पकड़ लिया उसके बाद भगवान शंकर का ऊपर का भाग काठमांडू नेपाल में प्रकट हुआ

 जिसे पशुपतिनाथ के मंदिर के रूप में जाना जाता है दूसरा भाग भगवान शंकर की  भुजाएं थी जो तुंग नाथ में उत्पन्न हुई  तीसरा भाग मुख था जो  रूद्र नाथ में उत्पन्न हुआ चौथा भाग नाभि के रूप में मद्महेश्वर में उत्पन्न हुए  पांचवा कल्पेश्वर में प्रकट हुए जो जटा रूप में विराजमान है

Tungnath Temple तुंगनाथ मंदिर

बाबा भोलेनाथ का तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ पर्वत मैं स्थित है यह मंदिर पंच केदारों में से एक है| इस मंदिर की ऊंचाई समुद्र तल से 3680 मीटर है यह मंदिर बहुत ऊंचाई पर बना हुआ है इस मंदिर की घाटियों में अलकनंदा और मंदाकिनी नदियां बहती हैं

 यह मंदिर भगवान भोलेनाथ को समर्पित है इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा पंच केदार के रूप में होती है बद्रीनाथ मंदिर और केदारनाथ मंदिर के मध्य में तुंगनाथ मंदिर पड़ता है यह मंदिर पर्वतराज हिमालय की खूबसूरत एवं प्राकृतिक सौंदर्य के बीच में स्थित है जिसके कारण यहां पर्यटक अधिक संख्या में आते हैं

 तुंगनाथ मंदिर बहुत ही पवित्र एवं शुभ स्थान माना गया है जो भक्तों की सभी मनोकामनाओ को पूर्ण करते है भगवान नंदी के दर्शन करने के बाद ही भगवान तुंगनाथ के दर्शन किए जाते हैं जो की बहुत ही फलदायक है इस में मंदिर में जो पुजारी पूजा करते है वे इसी गाँव के निवासी है

  इस मंदिर के पुजारी मक्कामाथ गांव के प्रसिद्ध ब्राह्मण होते हैं जो कि यहां पूजा पाठ एवं भगवान तुंगनाथ की सेवा करते हैं गुप्तकाशी में प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर की वास्तुशिल्प कला और मध्यमहेश्वर भगवान और  श्री केदारनाथ मंदिर के समान है

 मंदिर की वास्तुकला और बनावट जो कि उत्तर  भारतीय शैली से निर्मित है मंदिर के पास कई प्रकार के छोटे-छोटे मंदिर एवं अनेकों देवी-देवताओं की मूर्तियां है जो अनेक कलाकृतियों से सुसज्जित है मंदिर का यह पवित्र भाग विशेष एवं शुभ माना गया है एवं भगवान भोलेनाथ यहां पर स्वयंभू रूप में प्रकट हैं

 यहां विशेष प्रकार के बड़े-बड़े पत्थरों से मंदिर का निर्माण किया गया है जो की बहुत ही पुरानी कलाकृति एवं प्राचीन चित्रों से दर्शाया गया है  मंदिर में प्रवेश करते समय भगवान गणेश की मूर्ति के दर्शन विशेष शुभ दायक माने गएयहाँ पर  ऋषि व्यास एवं काल भैरव की मूर्तियां अष्टधातु की बनी हुई हैं केदारनाथ मंदिर में चांदी के सिक्के पर पांडवों की छवियां एवं अन्य चार केदारों  की छवियां बनाई गई हैं पंच केदारों के दर्शन करने के लिए पैदल मार्ग तय करना पड़ता है

Rudranath Temple  रुद्रनाथ मंदिर

रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है यह भगवान शिव का पौराणिक मंदिर है यह मंदिर पंच केदारों में से एक है रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शिव के मुख की पूजा होती है भगवान शिव का यह मंदिर बहुत ही सुंदर पर्वत शिखर पर स्थित है

 इस मंदिर से चारों तरफ सुंदर पर्वत मालाएं दिखाई पड़ती हैं रुद्रनाथ मंदिर के सामने दिखाई देने वाली पर्वत मालाओं में नंदा देवी की मंदिर की चोटी दिखाई देती है तुंगनाथ मंदिर से इन पर्वत मालाओं को देखने का आनंद एवं चारों तरफ शुद्ध पर्यावरण और यहां की प्राकृतिक छटा को देखने के लिए यहां पर पर्यटक आते रहते हैं 

जब हम गोपेश्वर से रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा प्रारंभ करते हैं तो उत्तराखंड के पर्वतों में स्थित स्टेशनों मैं गोपेश्वर का गोपीनाथ मंदिर बहुत अधिक लोकप्रिय है गोपीनाथ मंदिर में एक लोहे का त्रिशूल है जो आकर्षण का केंद्र बना रहता है भगवान रुद्रनाथ की यात्रा करते समय सभी लोग इस त्रिशूल का दर्शन अवश्य करते हैं

 उसके बाद गोपेश्वर से आगे चलने पर सागर नामक गांव आता है इस गांव तक यात्रा की जाती है उसके बाद रुद्रनाथ मंदिर की यात्रा का यह अंतिम पड़ाव है उसके बाद रुद्रनाथ मंदिर के लिए रोमांचक सफर सगर शुरू होता है यहां से 4 किलोमीटर पर्वतों की चढ़ाई प्रारंभ होती है

 जिसमें यहां पर आपको सुंदर बुग्याल देखने को मिलेंगे इन बुग्यालों में ऊपर चढ़ने के बाद जब हम आगे पहुंचते हैं तो हमारा दूसरा स्थान पित्र धार आता है पित्र धार में भगवान नारायण शिव एवं माता पार्वती का मंदिर स्थापित है यहां पर पहुंचने के बाद रुद्रनाथ की चढ़ाई समाप्त हो जाती है

 जब पर्यटक यहां यात्रा करते हैं तो उस समय यहां के सुंदर मनमोहक दृश्य पशु पक्षी एवं यहां पर होने वाले ब्रह्म कमल के भी दर्शन कर सकते हैं पित्र धार होते हुए लगभग 10 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद हम अपने मुख्य स्थान रुद्रनाथ मंदिर पर पहुंचते हैं

 यह मंदिर प्रकृति द्वारा निर्मित बहुत बड़ी गुफा मैं स्थित है यहां पर भगवान शिव की दुर्लभ मूर्ति है यहाँ पर भगवान भोलेनाथ गर्दन टेढ़े किये हुए स्वयंभू रूप में विराजमान है रुद्रनाथ मंदिर के समीप एक वैतरणी कुंड स्थित है इसी कुंड में शेषनाग की शया पर विराजमान भगवान् विष्णु की मूर्ति है जिसमे वे शक्ति के रूप में पूजे जाते है 

Madmaheshwar Temple  मद्महेश्वर मंदिर

मद्महेश्वर मंदिर में भगवान भोलेनाथ को नाभि के रूप में पूजा जाता है यह मंदिर बहुत ही सुंदर और रमणीक स्थान पर स्थित है समुद्र तल से इस मंदिर की ऊंचाई 3289  मीटर है यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है इस मंदिर के चारों तरफ हिमालय पर्वतों की श्रृंखलाएं हैं

 इन श्रृंखलाओं की खूबसूरती यहां से देखते ही बनती है यहां से हिमालय के पर्वतों में स्थित चौखंबा पर्वत के दर्शन होते हैं मद्महेश्वर मंदिर के कपाट 6 महीने खुले रहते हैं और सर्दियों में 6 महीने के लिए यहां के कपाट बंद कर दिए जाते हैं  यहां पर भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा अर्चना की जाती है

जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और पांडव विजय हुए उसके बाद पांडवों ने उस युद्ध में अपने भाइयों की हत्या कर दी थी  भ्रातृ हत्या के पाप  से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने भगवान शंकर का आशीर्वाद लेना चाहा लेकिन भगवान शंकर पांडवों से रूठे हुए थे

 तो भगवान शंकर ने उन्हें दर्शन नहीं दिए उसके बाद पांडवों ने भगवान शंकर के दर्शन के लिए काशी चले गए लेकिन भगवान शंकर उन्हें वहां नहीं मिले पांडव भगवान भोलेनाथ को ढूंढते रहे और ढूंढते ढूंढते वह हिमालय पर्वत पर पहुंच गए लेकिन भगवान शंकर पांडवों से रूठे हुए थे

 इसलिए वे उन्हें दर्शन देना ही नहीं चाहते थे उसके बाद भगवान शंकर हिमालय से अंतर्ध्यान हो कर केदार में चले गए जब भगवान शंकर केदार में चले गए तो पांडव भी उन्हें ढूंढते हुए वहां जा पहुंचे क्योंकि पांडव अपने वचन के पक्के थे पांडवों ने भगवान शंकर का पीछा किया और वह सब केदारनाथ जा पहुंचे

 जब वहां पहुंचे तब तक भगवान शंकर ने बैल का रूप धारण कर लिया था और भगवान शंकर बैल का रूप धारण करके अन्य पशुओं के साथ जा मिले अब पांडवों को संदेह हो गया कि भगवान शंकर यहां से कहां चले गए उसके बाद भीम ने विशाल रूप धारण किया

और दो पहाड़ों पर पैर फैला कर रख दिए उसके बाद वहां पर जितने पशु थे वह सब तो भीम के पैर के नीचे से निकल कर चले गए लेकिन शंकर जी ने जिस बैल का रूप धारण किया था वह भीम के पैरों के नीचे से निकल कर जाने को तैयार नहीं हुआ

 उसके बाद भीम ने अपने बल से उस बैल पर अपने विशालकाय शरीर के साथ उस बैल को पकड़ने के लिए झपटे लेकिन वह बैल केदारनाथ की भूमि पर अंतर्ध्यान होने लगा तभी भीम ने बैल के कंधे का उभरा हुआ हिस्सा पकड़ लिया उसके बाद भगवान शंकर का नाभि वाला भाग यहाँ प्रगट हुआ तब से यहाँ पर भगवन भोलेनाथ को नाभि के रूप में पूजा जाता है 
 


Kalpeshwar Temple कल्पेश्वर मंदिर

कल्पेश्वर महादेव मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है कल्पेश्वर मंदिर की ऊंचाई समुद्र तल से 2134 मीटर है यह मंदिर उर्गम  घाटी में स्थित है यहां पर भगवान शंकर के उलझे हुए बालों की पूजा की जाती है पंच केदारों  में यह मंदिर पांचवे स्थान पर आता है 

कहा जाता है कि ऋषि दुर्वासा द्वारा इसी स्थान पर कल्पेश्वर वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी और तभी से इस स्थान को कल्पेश्वर कहा जाने लगा यह मंदिर पंच केदारों  में सबसे कम ऊंचाई पर स्थित है इस मंदिर के कपाट वर्ष भर खुले रहते हैं विशेष तौर पर श्रावण के महीने इस मंदिर में श्रद्धालुओं की अत्यधिक भीड़ रहती है

 कल्पेश्वर महादेव मंदिर की पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि यह स्थान दुर्वासा ऋषि की तपस्या करने के कारण यहां का नाम कल्पेश्वर पड़ा कल्पेश्वर मंदिर कल्प  गंगा के किनारे स्थित है प्राचीन काल में कल्प गंगा का नाम हिरण्यवती था

 कल्पेश्वर शिला में एक गड्ढा है जिसके गर्भ गृह  में भगवान् भोलेनाथ स्वम्भू रूप में विराजमान है   ऐसा भी कहा जाता है कि यहां पर देवराज इंद्र ने दुर्वासा ऋषि के श्राप से मुक्ति पाने के लिए शिव की आराधना की थी और यहीं पर शिवजी ने प्रसन्न होकर देवराज इंद्र को कल्पतरु दिया था इसीलिए इस स्थान को कल्पेश्वर कहा जाता है
Kedarnath Temple Map

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1 Comments

  1. महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः। सुरासुरैर्यक्षमहोरगाद्यै: केदारमीशं शिवमेकमीडे ॥🙏🙏🙏🙏🙏

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